Monday, June 15, 2020

KARMA


                                                                                 कर्म  (blog:7)

                       हम अपने खुद के ही कर्म की प्रतीकृति हैं। 

कर्म का हिसाब बिल्कुल साफ़ है
कुदरत का एक उसूल है 
जो बांटोगे वही तुम्हारे पास 
बेहिसाब होगा, फिर वो दौलत हो,इज़्ज़त हो,
नफरत हो या मोहोब्त.....

कर्म अच्छे भी होते है और बुरे भी...कर्म का अर्थ है सारी क्रिया जो न सिर्फ हम शरीर द्वारा करते है लेकिन अपने मन और वाणी द्वारा भी करते है,हर वह चीज़ जिसका हमे अनुभव करता है और इसके लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं है| हमारे अनंत जन्मो के लिए हम खुद ही पूर्ण रूप से जिम्मेदार है| किसान जो बीज खेत मे बोता है, वेशी ही फसल काटता है। जब आप किसी की प्रशंसा करते हैं ,तो आप उनके अच्छे कर्म का प्रभाव ग्रहण करते हैं और आप किसी की बुराई करते हैं तो आप उनके बुरे कर्मों का प्रभाव ग्रहन करते हैं। 

कुछ कर्म बदले जा सकते है...इसके लिए हमे कर्म के तीन प्रकार को जानना होगा यह तीन प्रकार है..... 👇

1. प्रारब्ध (prarabdha karm)

2. संचित (sanchita  karm) 

3.आगामी (agami karm)

1.प्रारब्ध कर्म: 

प्रारब्ध कर्म वह है जिसका परिणाम वर्त्तमान मे आपको मिल रहा है| आप इसे बदल नहीं सकते क्योंकि यह पहले से ही घटित हो रहा है| 'प्रारब्ध' को दूसरे शब्द में 'भाग्य' कहते है. हमारे संचित कर्म में से, थोड़ा सा अंश मात्र कर्मो को जो हमें इस जन्म मे भोगना है उसे प्रारब्ध कर्म कहते है. हमारे जन्म से पहले, हमारे कर्मो के अनुसार हमें जन्म में किसके घर में जन्म लेना है,वो हमारे प्रारब्ध कर्म से निर्णय होता है. जो संचित कर्म मे से थोड़ा सा अंश मात्र को निकल कर हमारा भाग्य निधर्रित किया जाता है. यानि हमारे ही किये गए पाप -पुण्य कर्मो में से कुछ पाप-पुण्य कर्मो का फल, हमें इस जन्म में भोगना पड़ता है जिसे प्रारब्ध कर्म कहते है। 
सरल शब्दों में, हमारे जीवन में जो अच्छा-बुरा घटित होता है, जिस पर हमारा निंरतरण नहीं है वो प्रारब्ध है. इन पर हमारा नियंत्रण इसलिए नहीं होता क्योकि भगवान हमें प्रेरित करते है, कर्मो के फल को भोगने के लिए. अगर भगवान हमें भगवान हमें प्रेरित नहीं करे, तो कर्मो का फल मिलेगा कैसे? श्री कृष्ण कहते है- "केवल कर्म करने में ही हमारा अधिकार है,उसके फलों में नहीं।" यानी हमें अच्छे-बुरे कर्मो को करने का अधिकार है. फल तो अपने आप भगवान ही हमें दे देंगे, उसके बारे में चिंता करने का कोई मतलब नहीं
 है।  
जो प्रारब्ध अच्छे है वो हमारे कर्मो का फल है और जो बुरे है वो हमारे बुरे कर्मो का फल है. अतएव प्रारब्ध हमारे किये गए अच्छे-बुरे कर्मो का फल है।  

2. संचित:

'संचित का अर्थ है - 'एकत्रित, संचय, या इकठा किया हुआ. इस प्रकार संचित कर्म का अर्थ है - 'कर्म जो एकत्रित है, संचय किए हुए कर्म या इकठा किया हुआ कर्म। अतएवं संचित कर्म अर्थात अनेक पूर्व जन्मो से लेकर वर्तमान में किये गए कर्मो के संचय को संचित कर्म कहते है. वे अन्नत है (क्योकि हमारे अनन्त जन्म हो चुके है) और उनमे नये नये कर्म जाकर एकत्र होते है. यानी हमारे ही अनेको जन्मो के पाप और पुण्य कर्मो का संचय संचित कर्म है 

जो हम अपने साथ लेकर आए है|

जिन्होंने ध्यान और आध्यात्मिक क्रियाओ द्वारा समाप्त किया जा सकता है| 

3.आगामी:

वह जो अभी आपके सामने आये नहीं है: वे कर्म जो भविष्या मे आने वाले है| 

यदि आप कोई अपराध करते है तो हो सकता है आप आज न पकड़े जाएं परंतु इस बात का पूरी संभावना है कि आप भविष्या मे पकड़े जायेगे ये आपके द्वारा किये गए कार्यो के भविष्या के कर्म है| 


कर्म सामान्य तौर पर वह हमारे भीतर के ही अभिप्रायो का फल है| हमारी सोच,हमारी शब्द और हमारे कार्य के
सभी "कर्म" के अंतर्ग़त आते है|
यानि जो कुछ भी हम करते है (अच्छा या बुरा) उनके परिणाम हम तक अवस्य ही आते है। 

APPS.


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10 comments:

अपने भाव

  अपने भाव     विचार के बीच से ही कर्म का फल बनता है। इसीलिए सिर्फ शुद्ध विचारों के ही बीज बोने चाहिए। जैसे कि श्रेष्ठ फल की प्राप्ति हो सके...