Thursday, September 3, 2020

karma ki kahani

                          कर्म  किसी  को नहीं छोडता 


कर्म एक दर्पण है | जो कुछ भी हमने किसी के साथ किया है, वो आज हमारे सामने है।
 भगवान कहते है : "में किसीका  भाग्य नहीं बनाता हूँ, हर कोई अपना भाग्य खुद बनाता है। तुम आज जो कर रहे हो उसका फल तुम्हे कल प्राप्त होगा और आज जो तुम्हारा भाग्य है वह तुम्हारे पहले किये गए कर्मो का फल है। 

एक बार महाराज धृतराष्ट्र ने रोते हुए भगवान कृष्ण से पूछा :मेने ऐसा कोनसा पाप किया है जो मुझे १०० पुत्र की मौत  देखनी पड़ी, मेने तो अपने पिछले १०० भव देख लिए पर ऐसा कोई पाप (कर्म ) नहीं दिखाई दिया, अब आप ही बताओ: मेने ऐसा क्या किया था जो मुझे अपने १०० पुत्र की मौत  देखनी पड़ी?

तभी भगवान कृष्ण ने कहा बात १०० जन्म की नहीं है ये उस्से पहले के कर्म है, आज से १०० जन्म पहले आप एक बहोत बड़े सम्राट थे. बड़े संवेदनशील और दयालु थे, आप बड़े न्यायी थे. आप का न्याय सारी दुनिया में फैला हुआ था सारी दुनिया में आप का बहोत बड़ा नाम था। तभी महाराज धृतराष्ट्र ने पूछा १०० साल पहले के कर्म ?? तो भगवान कृष्ण ने कहा : हा ! १०० साल पहले के कर्म है। कुछ कर्म ऐसे होते है उनका फल १० साल बाद मिलता है और कुछ फल अगले जन्म या तो वर्तमान में भी मिल सकता है, पर जो कर्म किये है वो कर्म का फल होता ही है अच्छा या बुरा |
राजन सारी दुनिया में तुम्हारा नाम था तुम न्यायप्रिय थे पर आप में एक अवगुण था। सारे अच्छे गुण में एक अवगुण था. जैसे एक दूध से भरे कटोरे में एक निम्बू का रस मिलालो तो वो फट जाता है वैसे ही सारे अच्छे गुण में एक ख़राब गुण सारी जिंदगी ख़राब कर देता है. आप को खाने का बड़ा शौख था. भोजन से आप को इतना लगाव था अगर खाना अच्छा ना बने तो आप थाली फेंक देते थे एक बार आपके रसोइये को अच्छी सब्जी नहीं मिली और उसे पता था की समय पर अच्छा खाना नहीं मिलेगा तो आप उसे मृत्यु दंड सुना दोगे इसी डर की वजसे उसने महल के पीछे एक हंस का बच्चा था उसे लाके पका दिया और उसे में इतना मिर्च मसाला डाल कर आपको परोस दिया, आप तो शुद्ध शाकाहारी थे  आप को पताही ही नहीं चला की ये हंस का बच्चा था, आप ने खा लिया और उस रसोई की इतनी तारीफ करते हुए अपने गले मैसे सोने का हार निकाल कर दे दिया रसोईया खुश हो गया, उसने रोज एक-एक करके १०० हंस के बच्चे को मार के आपको खिला दिया और आप को पता भी न चला.
इस तरह आपको हंस के १०० बच्चो के मारने का कर्म बंदन हुआ आज आप उसी कर्म को भुगत रहे हो. कर्म सिद्वान्त का यह नियम है की जो भी कर्म करता है उसके फल को भोगने के लिए उसे दुबारा जन्म लेना पड़ता है क्योकि कुछ कर्म के फल उसी जन्म में नहीं भोग पाते है. 
भाग्य से संयोग से कुछ नहीं होता। आप अपने कर्म से अपना भाग्य खुद बनाते हो. वही कर्म है.

APPS
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